कलंक नहीं प्रेम है काजल...

गाने के ये चंद शब्द एक तरफ निश्छल प्रेम को बयां कर रहें हैं... तो दूसरी और प्रेम को लेकर समाज की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाते हुए प्रेम का सही अर्थ और महत्त्व समझाने का प्रयास कर रहें है...समाज में प्रेम को उस दाग की तरह देखा जाता है जिसे लोग कलंक का नाम दे देते है...असल में प्रेम तो वो खूबसूरत एहसास है जो अपने आप में ही पूर्ण है...जो एक कलंक नहीं बल्कि वो काजल है जो उसे हर बुरी नजर से सुरक्षित रखता है...प्रेम वो है जो एक मां को अपने बच्चे से है, प्रेम वो है जो पिता को अपनी संतान से है, प्रेम वो है जो राधा को कृष्णा से है...बिना किसी शर्त के बिना किसी स्वार्थ के किसी उसके सुख - दुख को अपनाना, उसकी खुशी से खुश,उसके गम से दुख, अपने से ज्यादा उसको महत्त्व देना ही प्रेम है...और एक मां, पिता ,राधा - कृष्णा से अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है... किसी की अच्छे की कामना करना,उसको देख कर खुश रहना मात्र लगाव है ...जो आज है तो शायद कल ना हो...एहसास तो बदलते रहते है...लेकिन नहीं बदलता तो प्रेम...जो अमिट और अमर हैं...