🖼️अपने तस्वीरों के 🖼️ कितना भी संभाल लो दिल को इसे अपने ही तोड़ देंगे मेरे होके भी वो इस कदर नाता छोड़ देंगे जब तोड़ने की बात ही आई तो याद आया अपने ही तो छोड़ते है गैरों में इतना दम कहां मुंह तो अपने ही मोड़ते है देखा है कुछ पुरानी तस्वीरों में साथ मैंने मेरे परिवार को छोड़ो, क्या ही कहें वक्त ही नहीं है अब तो तो सोम, वीर और यहाँ तक रविवार को कभी कभी लगता है ये फ़्रेम्स ही अच्छी है जो झूठ बोल देती है साथ मुस्कुराते चेहरों को बेगाना तो ना कहती हैं …
वो सहमी थी घूरती निगाहों से पर चेहरे पर सिकन ना आने दी डर को कोई समझ ना ले “कमजोरी” ये बात ज़हन से ना जाने दी क्यों हक है उन भेड़ियों को नज़रों से इज़्ज़त चीरने का ये मैंने तो नहीं दिया छोड़ो… सिर्फ़ देखा ही तो है कुछ किया तो नहीं कहकर इसको ज़रा सी बात बना दिया मैं औरत हूँ ना समझती हूँ उन नज़रों को जो मेरी तरफ़ उठती हैं छठीं इंद्री मेरे पास है जो ईश्वर ने सिर्फ़ महिलाओं को दी है क्यों नहीं सिखाया जाता? उन निगाहों को नोचना जो उसकी “आत्मा” को छलनी करती हैं क्यों सिखाया जाता है “सहना” जब “माँ, बेटी, बहन” तो सबकी हैं…
एक ही चांद है एक ही आसमां फिर कैसे कहे अलग है दोनों के जहां तुम बसते हो मेरी बिंदिया में जब मैं संवरती हूं तुम हो मेरे नैनों में जब मैं आंखे बंद करती हूं तुम हो मेरी काजल में जो मुझे हर नजर से बचाती है तुम हो मेरे मन में जो हर पल तुम्हारी याद दिलाती है तुम हो मेरे ईश्वर में जब मैं उनको निहारती हूं तुम हो मेरे एहसास में जिसको मैं अपना मानती हूं तुम हो मुझमें जब मैं खुदको ही तकती हूं हर नज़र से बचाकर तुम्हें अपनी दुआओं में रखती हूं।
Comments
Post a Comment