सिक्का और आदमी...


एक सिक्के के दो पहलू होते है और सबने जीवन में बहुत बार सुना भी होगा।वैसे ही इंसान के भी दो पहलू होते है।एक वो जो आपको दिखाई देता है,आपके साथ या दूसरों के साथ जो व्यवहार होता है अथवा जो वो आपको दिखाते है या दिखाना चाहते है।लेकिन इसके उलट एक सिक्के की भांति एक दूसरा पहलू भी होता हैं और उससे आप अनभिज्ञ होते है या वो आपको कभी या अचानक या ये भी हो सकता है कि किसी कारणवश या किसी परिस्थिति में आपको दिख जाए। शायद तब आश्चर्य होगा या फिर नहीं भी। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है जरूरी नहीं जो इंसान जैसा दिखता है वैसा हो या फिर हो सकता है आप उसे जैसा देखते है असल में वो वैसा ना हो या फिर आपको ही कुछ गलत लगा हो या वो हर परिस्थिति के अनुसार खुद को ढाल लेता या बदल लेता हो।ये शायद हम,हमारा करीबी,सगे-संबंधी या खुद भी होते है तो दूसरों का तो हम खुद भी अंदाजा लगा सकते है।

जैसे अगर कोई अधिकारी अपने परिवार के साथ अलग है लेकिन वहीं किसी भी विषय से जुड़ा अधिकारी अपने काम के समय (अपने पेशे में) अलग होता है।वहीं एक लुटेरा दूसरों को लूट सकता है लेकिन घरवालों को नहीं। इसीलिए किसी का सिक्का होना परिस्थिति की मांग या जिम्मेदारी होती है तो किसी का सिक्का होना इंसान का स्वयं का स्वार्थ होता है।

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